खोज, हँसी, और एक माँ की मोहब्बत: लिप्सटिक का सफर

वसुधा अपने कमरे में ड्रेसिंग टेबल की हरेक दराज़ खोल कर बहुत ध्यान से कुछ तलाश रही थी. उसने सारा सामान बेतरतीब कर दिया था. लेकिन वो चीज़ नहीं मिली जिसे वो ढूंड रही थी. कुछ बड़बड़ाते हुए बेड की साइड टेबल पर भी इसी तरह सारा सामान हटाकर देखा लेकिन वो गुम हुई चीज़ वहां भी नहीं मिली.

“कहां गई मेरी लिप्सटिक? ड्रेसिंग टेबल पर ही तो रखती हूं. यहां तो कोई आता भी नहीं.” वो सोचते हुए थक हार कर बैठ गई. लिपस्टिक खो जाने का उसे मन ही मन दुख हो रहा था. ये लिप्सटिक वसुधा की भाभी फ्रांस से उसके लिए लाई थीं. उसे लिप्सटिक का रंग भी ख़ूब पसंद आया था. वो उसे कुछ ख़ास मौक़ों पर ही लगाती थी. आज उसका पति घर पर ही था तो सोचा था कि पति की मौजूदगी में ज़रा ख़ुद को अच्छी तरह संवारेगी. लेकिन उसकी तो मनपसंद लिप्सटिक ही ग़ायब हो गई थी. उसके मन में उमड़घुमड़ चल रही थी कि अचानक उसकी नज़र सफाई करती सत्तो पर पड़ी. मन में ख़्याल आया- “कहीं इसने तो नहीं चुरा ली. नहीं.. नहीं.. ये ऐसी नहीं है.”

फिर वसुधा की नज़र सत्तो की सात साल की बेटी पिंकी पर पड़ी जो मोंढे पर सिकुड़ी बैठी थी. सत्तो काम पर अपनी बेटी को साथ ही लाती थी. और वो मोंढा जिस पर वो बैठी थी वही उसकी निर्धारित जगह थी. सत्तो जितनी देर काम करती पिंकी वहीं बैठी रहती. हालांकि वसुधा की बेटी टीना भी पिंकी की हमउम्र ही थी लेकिन पिंकी को उसके साथ खेलने की इजाज़त नहीं थी. पिंकी टीना के खिलौने बड़ी ललचाई नज़र से देखती थी. अगर कभी हिम्मत जुटाकर, चोरी से.. उन खिलौनों को हाथ भी लगा देती, तो वसुधा का पारा हाई हो जाता. वो उसे फटकार कर भगा देती और सत्तो को भी ख़ूब सुनाती. सत्तो शर्मिंदा हो जाती और माफ़ी मांगती. फिर पिंकी को वापिस मोंढे पर लाकर बैठा देती. वसुधा की खरीखोटी सुनकर जब सत्तो ज़्यादा खीज जाती तो पिंकी पर ही गुस्सा निकालने लगती और उसे तेज़ आवाज़ में डांटती. अगर पिंकी रोती तो कहती.

“चुप, बिल्कुल चुप नहीं तो आंटी कोठरी में बंद कर देगी. ” और पिंकी सहम कर सिसकियां लेते-लेते चुप हो जाती. लेकिन खिलौनों को ललचाई नज़र से देखना बंद ना होता.

वसुधा को अचानक याद आया कि दो दिन पहले भी उसने पिंकी को डांटा था जब वो टीना के साथ उसके कमरे में आ गई थी और दोनों ने कमरे का सारा सामान तितर बितर कर दिया था.

“हो ना हो मेरी लिप्सिट इस पिंकी ने ही चुराई है. अभी पता लगाती हूं. ”

“पिंकी मेरी लिप्सटिक कहां ले गई है तू ?” वसुधा ने तेज़ आवाज़ में पिंकी से पूछा तो वो सहम गई लेकिन कोई जवाब नहीं दिया.

“सही-सही बता तू ही ले गई है ना मेरी लिप्सटिक ?” वसुधा ने ज़रा और सख़्ती से पूछा. पिंकी डरी सहमी वसुधा को देखती रही लेकिन कुछ बोली नहीं. वसुधा की तेज़ आवाज़ सुनकर सत्तो भी आ गई.

“क्या हुआ भाभी इसने फिर कुछ किया क्या ?” सत्तो ने पूछा.

“मेरी एक लिप्सिटक ग़ायब है. और मुझे पता है यही ले गई है. ” वसुधा ने पूरे विश्वास के साथ कहा.

“नहीं भाभी, ऐसा नहीं है. आज तक कोई चीज़ कभी इधर से उधर हुई है क्या?”

“मैं तुझे नहीं कह रही कि तू ने चुराई है. मैं तो इस पिंकी को कह रही हूं. ”

“भाभी ये तो इसी मूंढे पर बैठी रहती है. अपनी जगह से हिलती तक नहीं. ”

“ दो दिन पहले ये टीना के साथ मेरे कमरे में आई थी. याद है ना मैंने इसे डांट के भगाया भी था. इसने तभी हाथ साफ़ किया है. ”

पिंकी वसुधा और सत्तो को तेज़ आवाज़ में बोलता देख बुरी तरह डर गई थी.

“ भाभी ये कमरे से कुछ भी साथ नहीं लाई थी. अगर लाती भी तो मैं खुद ही लौटा देती. ”

“ क्या भरोसा तेरी भी नियत बिगड़ गई हो. ” वसुधा गुस्से से पागल हो रही थी. जो मुंह में आ रहा था सत्तो और पिंकी को कहे जा रही थी.

“अभी इसे दो जडूंगी तब बताएगी.” ये कहते हुए वसुधा ने पिंकी के बाज़ू को इतनी तेज़ी से पकड़ कर खींचा कि पिंकी दर्द और डर से रोने लगी.

बेटी को रोता देख सत्तो से रहा नहीं गया. उसने एक झटके से पिंकी का हाथ वसुधा के हाथ से छुड़ाया और चिल्ला कर बोली.

“खबरदार भाभी. हाथ ना लगाना मेरी बच्ची को. हम ग़रीब ज़रूर हैं लेकिन चोर नहीं हैं. ढूंढ लेना अपने लिए कोई और काम वाली. ”- ये कह कर सत्तो रोती हुई पिंकी को गोद में उठाकर चली गई. और वसुधा गुस्से में बैठी रही. तभी डोर बेल बजी तो उसने दरवाज़ा खोला. उसका पति राकेश और बेटी टीना आ गए थे. राकेश ने आते ही हंसते हुए वसुधा से कहा.

“तुम्हें पता है तुम्हारी बेटी पेंटर हो गई है. ”

“अच्छा ” वसुधा, बेटी और पति को हंसता मुस्कुराता देख अपना गुस्सा भुला बैठी.

“रास्ते में पिंकी ने मुझे बताया कि उसने तुम्हारी और मेरी एक तस्वीर बनाई है. जाओ बेटा जल्दी से मम्मी को लाकर दिखाओ.”

पिंकी जल्दी से हंसती हुई गोद से उतरी और दौड़कर वो कागज़ ले आई जिस पर उसने वसुधा और राकेश की ड्राइंग बनाई थी.

ड्राइंग पेपर वसुधा और राकेश को दिखाते हुए पिंकी ने लहक कर पूछा- “देखो मम्मा मैंने कैसी बनाई है.”

ड्राइंग देखकर वसुधा की हंसी एकदम ग़ायब हो गई. वो उसे आंखे फाड़कर ग़ोर से देखती रही फिर पिंकी से पूछा.

“बेटा ये कलर आपको कहां से मिला. ”

“ये मैंने आपकी लिपस्टिक से बनाया है. ” पिंकी ने मुस्कुराते हुए बड़ी मासूमियत से कहा और वसुधा उसे देखती रह गई. मन पछतावे से भर गया था.

BY AFROZ JAHAN

Senior Journalist and Urdu Translator

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