“गुस्ताख़ इश्क़: जब इश्क़ सिर्फ जज़्बात नहीं, इंकलाब बन जाए”

“कभी-कभी कोई किताब सिर्फ़ पढ़ने के लिए नहीं होती — वो किताब होती है महसूस करने के लिए, हर लफ़्ज़ से उस दर्द को छूने के लिए जो किसी और ने जिया हो… गुस्ताख इश्क़ ऐसी ही एक किताब है।”- महिमा शर्मा, फाउंडर & एडिटर,  THE THINK POT 

“गुस्ताख़ इश्क़” इरा टाक की ग्यारहवीं प्रमुख कृति है, जिसे ‘मंजुल कथाकार भोपाल’ ने प्रकाशित किया है। इसमें कुल १० अध्यायों में एक आधुनिक प्रेम कहानी के साथ‑साथ एक औरत की आत्मनिर्भरता, भावनात्मक दृढ़ता और सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ उसकी जद्दोजहद को दस्तावेज़बद्ध किया गया हैI स्टोरीटेल पर ऑडियो संस्करण भी काफी लोकप्रिय रहा है और यह बेस्टसेलर बना I

Era Tak, जिनका कलम महज़ लफ़्ज़ नहीं उगलता — वो जज़्बात बहाता है — उन्होंने इस उपन्यास के ज़रिए प्यार, दर्द, विरोध और अस्तित्व के संघर्ष को कुछ इस तरह बुना है जैसे कोई सूफ़ी कलाम हो, जो रूह तक जाकर ज़रूर कुछ हिला दे।

ये कहानी एक औरत की है — एक ऐसी औरत जो सिर्फ़ किसी की “बीवी”, “माँ” या “बेटी” बनकर नहीं जीती। वो जीती है अपने लिए। वो मोहब्बत करती है — गुस्ताखी से। उसका इश्क़ पाक है, लेकिन समाज की नज़र में गुनाह। और यही है सबसे गहरा टकराव — दिल की सच्चाई और दुनिया के उसूलों का।

इस कहानी में नारी की आज़ादी कोई नारा नहीं है — ये एक ज़िंदा सवाल है — क्या एक औरत को हक़ है अपने लिए जीने का? Era ने ये सवाल उठाया भी है, और जवाब भी दिया है… उसकी आँखों, उसके आँसुओं और उसके जज़्बातों के ज़रिए।

“भाषा और लेखन शैली की बात करें तो — Era Tak का लिखने का अंदाज़ शायरी जैसा है, लेकिन हर लफ़्ज़ तीर की तरह दिल में उतरता है। संवाद ज़्यादा नहीं हैं, पर जो भी हैं, वो ख़ामोशी में भी गूंज जाते हैं। हर पन्ने पर एक सिलसिला सा चलता है — कभी प्यार का, कभी ख़ुद से लड़ने का, और कभी ख़ुद से मिलने का।”- THE THINK POT 

जो लोग प्रेमचंद और अमृता प्रीतम जैसी लेखनी में जज़्बात ढूंढते हैं, उनके लिए यह उपन्यास एक ख़ज़ाना है। लेकिन जो लोग ख़ुद कभी एकतरफ़ा या लफ़्ज़ों से परे प्यार से गुज़रे हैं, उनके लिए गुस्ताख इश्क़ एक आईना है — दर्द भरा, लेकिन रौशनी से भरा हुआ।

लेखनशैली एवं भाषा

इरा टाक की लेखनी में एक सहज‑स्वराही लय है, जिसमें भावनाएँ उभर आती हैं जैसे पानी में तरंगें। हिंदी‑उर्दू मिश्रित शैली (जिसमें उलझन‑सी मीठी उर्दू शब्दावली और हिंदी की स्पष्टता दोनों हैं) आत्मा को छू जाती है। पाठक कभी मधुर शब्दों में खो जाता है, तो कभी सामाजिक यथार्थों की काट महसूस होने लगती है।

लेखिका चित्रकारी और पटकथा लेखन जैसे आयामों में भी सक्रिय हैं, जिसका प्रभाव इस लेखन में स्पष्ट है — दृश्यात्मकता और संवाद दोनों प्रभावशाली हैं I

गुस्ताख़ इश्क़ सिर्फ प्रेम‑कथा ही नहीं, बल्कि आधुनिक महिला की यात्रा है — आत्मसम्मान, परिवार, धर्म, प्रेम और स्वांघ की टकराहट का दस्तावेज़। नज़ाफ़ का संघर्ष सरल नहीं; वह प्यार में भी अपनी मर्यादा बनाए रखती है। वह मालीहा को प्रेम की राह में “रोब” नहीं बनने देती, बल्कि खुद को त्याग करती है — यह त्याग उसकी ताकत भी है और विरह भी।

यह उपन्यास अमूमन प्रेम‑कथाओं से अलग उस जटिल पहचान, सामाजिक दबाव और महिला‑स्वतंत्रता की दुहाई भी देता है। यह प्रश्न खड़ा करता है: प्रेम में गलती किसकी? संबंधों की कड़वाहट किसकी ज़रूरत से अधिक है?

यह केवल परिवार, रोमांस या सामाजिक कहानी नहीं; यह महिला‑शक्ति, आत्मसम्मान और स्वाधिकार की संस्कृति की बात करता है। यदि आप रोमांस में गहराई, महिला की आंतरिक दुनिया और सामाजिक सीमाओं का उलंघन देखना चाहते हैं—तो ये किताब आपकी ज़रूरतों का जवाब है

यह पुस्तक लिखने से पहले उन्होंने 10 पठनीय पुस्तकें लिखी हैं। आप यहाँ उनकी अन्य पुस्तकों की एक झलक देख सकते हैं, जो ऑनलाइन आसानी से खरीदने के लिए उपलब्ध हैं।

आख़िरी बात दिल से

“गुस्ताख इश्क़” सिर्फ़ एक उपन्यास नहीं है — ये एक तलाश है – ऐसे प्यार की जो सीधा दिल से निकलता है, और सीधा दिल तक पहुँचता है। अगर आपने कभी किसी से बेपनाह, बेपरवाह, बेइंतहा मोहब्बत की हो — तो ये किताब आपको रुलाएगी भी, समझाएगी भी, और आख़िर में… शायद आपको आपसे मिला देगी। कोई आश्चर्य नहीं कि हाल ही में गुलज़ार साहब ने उनकी एक पुस्तक का विमोचन किया।

आशा है यह समीक्षा आपको गुस्ताख़ इश्क़ की गूढ़ दुनिया को समझने, महसूस करने और सराहने में मार्गदर्शन देगी।

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